“चीड़ों पर चाँदनी ” से

सुबह कमरे की खिड़की से बाहर झाँकते ही क्षण-भर के लिये दिल की धड़कन रुक जाती थी। मैं पलंग से उतर कर काँपते हाथों से सोते हुए भाई-बहनों को जगाने लगता था।


क्या यह शिमला है—हमारा अपना शहर—या हम भूल से कहीं और चले आये हैं? हम नहीं जानते कि पिछली रात जब हम बेख़बर सो रहे थे, बर्फ़ चुपचाप गिरती रही थी।
Notes:

Audio version performed by Viplav Saini.

Read the English-language translation, from “Moonlight on Pine Trees,” and the translator’s note, both by Viplav Saini.

Source: Poetry (September 2023)
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